ये पल भी बित जायेंगे
आज जब हमारे माननीय प्रधान मंत्रीजी ने lockdown की अवधि बढा दी तो कुछ बच्चोको अच्छा नहीं लगा तो बडोने कहा के ये पल भी बित जायेंगे। तब मुझे एकदमसे एक कहानी याद आ गयी। शायद आपको अच्छा लगे और ऐसा भी हो सकता हे की आपने ये कहानी सुनी भी हो।
एक बड़ा राजा था। अपने दरबार में , दरबारी के साथ रोज नए विषय पर चर्चा करता था। हर दरबारी बहोत कुशल एवं चतुर थे। सब नई चर्चा में शामिल होते थे। ऐक दिन राजाने कहा आप सब मुझे कोई ऐसा वाक्य, सूत्र या विचार दे जिसका अर्थ हर परिस्थिति में एक ही रहे और उसका मतलब अर्थपूर्ण ही रहे।
सब इस पर बहोत चर्चा करते हे। एक से एक नए विचार प्रदर्शित होते हे। सब विचारो को अलग अलग परस्थितिओ में जांचा जाता हे। मगर कुछ एक परिस्थिति ठीक हे तो कुछ अलग में नहीं। ये चर्चा बहोत दिन चली मगर एक भी ऐसा विचार या वाक्य या सूत्र ऐसा नहीं मिला जिस से सब को संतोष हो।
राजा निराश हो गया। क्या मुझे ये वाक्य नहीं मिलेगा ?
कुछ ज्ञानी इस पर रोज सोचते पर निराश होते। एक दिन कोई ख़बर लाया की राज्य की सिमा पर एक बड़े सिध्ध संत आए हे। उन्हों ने राजा से बिन्ती की कि हमें ये संत से मिलाना चाहिए शायद हम जो खोजने का प्रयास कर रहे हे वह ये संत से चर्चा करने से मिल जाए। राजा को भी इसके समधाम लेने में रुचि थी। वो तत्काल सहमत हो गए और संत से मिलने सिमा की ओर चले।
उन्होंने देखा की एक बूढ़े सामान्य सा दिखने वाला आदमी वहां बैठा था। मन में संशय आया कि क्या ये जवाब दे पाएंगे ? फिर भी बड़ी श्रद्धा और विवेक से उन्हें प्रणाम किया। अपने आने का प्रयोजन बताया। आशा प्रगट कि की आप ऐसा सूत्र /वाक्य या विचार ज़रूर देंगे जो हर हालत में सही हो।
संतने उन्हें इक अँगूठी दी। राजा ने कहा मुझे सूत्र दो कोई चीज नहीं। संत ने हँस कर कहा अब इसे धारण करलो वक़्त आने पर आपको जवाब मिल जाएगा।
राजा लौट आये। उन्हें लगा ठीक है वक्त आने पर देखेँगे। अब रोज के काम में व्यस्त हो गए और ये बात भूल गए।
कुछ समय बीतने पर दूसरे राजा से युद्ध की स्थिति बन गई। उनके राज्य पर आक्रमण हुआ। वे युद्ध भूमि पर गए। उनके पीछे हमला हुआ और वे वहासे भागे। पीछे घोड़े की आवाजे आ रही थी वे खुब आगे निकल गये , थक गए , एक जगह रुक गए। उन्हों ने अपना हाथ मसला और निराशा जताई पर अचानक उंगली में अँगूठी पे ध्यान गया। संत के शब्द याद आये.अंगूठी को ध्यान से देखा। वो ऊपर से खुल रही थी। खोला तो अंदर एक सूत्र था। ये पल भी बित जायेंगे। राजा ने महसूस किया की सच अब कोई घोड़े की आवाज़ नहीं आ रही हे। अब वे स्वस्थ थे। अपने राज्य की और गए। वहा जाने पर पता लगा की वे युद्ध जित गए हे.अगले दिन जब वे अपने सिंहासन की और बढ़ रहे थे फिर उनकी ऊँगली पर हाथ गया. तत्काल उन्हें याद आया सूत्र "ये पल भी बित जायेंगे" और जो अभिमान के भाव थे की में जीता हुआ राजा हु वो भी विवेक में परिवर्तित हो गए।
कभी भी एक सी परिस्थति नहीं रहती अगर सुख नहीं टिकता तो दुःख भी नहीं टिकता। निराशा किसी का हल नहीं हे , आशा बनाये रखो और परिश्रम करो तो फल मिलता हे।
आज के समय में भी ये इतना ही सही हे। हम सब नियम का पालन करते हुए घर पर रहे,सुरक्षित रहे।
ये पल भी बित जायेंगे
I like the topic. Hope ae pal bhi jaldi se bit jaye.
ReplyDeleteSure, this will pass too. Good Read. Keep sending.
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